इस ज़िन्दगी की शाम ढलने से पहले
एक आरज़ू हैं
के ख़्वाब हो मेरे
रंग तेरे संग से भरने की हैं
के संग तेरे ऐसे चले
कदमों के निशां मेरे हो
और राह तूने दिखाई हो
मै बोलू जो बात
तो हर लफ्ज़ सुनहरे हो
जेसे कानों में मुरली की धुन
तूने बजाई हो
ये संग एसा हो के
जज़्बात मेरे हो
सूखे पत्ते पे उतरे
अल्फाज़ तेरे हो
पैगाम मेरा हो
ज़माने के लिए
ज़माना तेरे इशारों पे
अंगड़ाई ले रहा हो
के कलम तो हैं
मेरे हाथो में
पर एहसास से भरे
अल्फाज़ तेरे हो
जो भी तुने दिया हैं
तुझ ही को अर्पण हैं
मेरे जीने का मकसत भी
तेरा हो।
– For My गुरूजी 🙂
Superb Jagrati Khandelwal ! 🙂